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अ॒यं स होता॒ यो द्वि॒जन्मा॒ विश्वा॑ द॒धे वार्या॑णि श्रव॒स्या। मर्तो॒ यो अ॑स्मै सु॒तुको॑ द॒दाश॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ayaṁ sa hotā yo dvijanmā viśvā dadhe vāryāṇi śravasyā | marto yo asmai sutuko dadāśa ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒यम्। सः। होता॑। यः। द्वि॒ऽजन्मा॑। विश्वा॑। द॒धे। वार्या॑णि। श्र॒व॒स्या। मर्तः॑। यः। अ॒स्मै॒। सु॒ऽतुकः॑। द॒दाश॑ ॥ १.१४९.५

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:149» मन्त्र:5 | अष्टक:2» अध्याय:2» वर्ग:18» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:21» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (सुतुकः) सुन्दर विद्या से बड़ा उन्नति को प्राप्त हुआ (मर्त्तः) मनुष्य (अस्मै) इस विद्यार्थी के लिये विद्या को (ददाश) देता है वा (यः) जो (द्विजन्मा) गर्भ और विद्या शिक्षा से उत्पन्न हुआ (होता) उत्तम गुणग्राही (विश्वा) समस्त (श्रवस्या) सुनने में प्रसिद्ध हुए (वार्याणि) स्वीकार करने योग्य विषयों को (दधे) धारण करता है (सः) (अयम्) सो यह पुण्यवान् होता है ॥ ५ ॥
भावार्थभाषाः - जिसका विद्या और उत्तम शिक्षायुक्त माता-पिताओं से एक जन्म और दूसरा जन्म आचार्य और विद्या से हो, वह द्विज होता हुआ विद्वान् हो ॥ ५ ॥इस सूक्त में विद्वान् और अग्न्यादि पदार्थों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥यह एकसौ उनचासवाँ सूक्त और अठारहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

यः सुतुको मर्त्तोऽस्मै विद्यां ददाश यो द्विजन्मा होता विश्वां श्रवस्या वार्य्याणि दधे सोऽयं पुण्यवान् भवति ॥ ५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अयम्) (सः) (होता) ग्रहीता (यः) (द्विजन्मा) गर्भविद्याशिक्षाभ्यां जातः (विश्वा) सर्वाणि (दधे) धत्ते (वार्याणि) वर्त्तुं स्वीकर्त्तुमर्हाणि (श्रवस्या) श्रवसि श्रवणे भवानि (मर्त्तः) मनुष्यः (यः) (अस्मै) विद्यार्थिने (सुतुकः) सुष्ठुविद्यावृद्धः (ददाश) ददाति ॥ ५ ॥
भावार्थभाषाः - यस्य विद्यासुशिक्षायुक्तयोर्मातापित्रोः सकाशादेकं जन्माऽऽचार्यविद्याभ्यां द्वितीयं च स द्विजः सन् विद्वान् स्यात् ॥ ५ ॥अस्मिन् सूक्ते विद्वदग्न्यादिगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥इत्येकोनपञ्चाशदुत्तरं शततमं सूक्तमष्टादशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्याला विद्यायुक्त व सुशिक्षित माता-पिता यांच्याकडून जन्म मिळतो तो एक जन्म. आचार्य व विद्येद्वारे द्विज बनतो व विद्वान होतो, तो दुसरा जन्म होय. ॥ ५ ॥